Author: phmindia_jsa

गुजरातमधील व्याराची लढाई: सरकारी रुग्णालय वाचवण्याचा आदिवासींचा संघर्ष

दक्षिण गुजरातमधील आदिवासीबहुल जिल्हा असलेल्या तापीच्या व्यारा गावात आज एक वेगळ्याच प्रकारची लढाई लढली जात आहे. व्यारा जिल्हा रुग्णालय हे खाजगी कंपनीकडे सोपवून मेडिकल कॉलेज सुरू करण्याच्या प्रस्तावाने या जिल्ह्यातील जनतेला धक्का बसला आहे. याविरोधात तेथील स्थानिक आदिवासी आता उभे राहिले आहेत. हा फक्त एका या निर्णयाविरुद्धचा विरोध नाही, तर एका जनता विरोधी धोरणाचा ही विरोध आहे. जो की सार्वजनिक आरोग्यासाठी नाही, तर नफ्यावर आधारित आहे. प्रत्येकाला स्वस्त आणि चांगले उपचार मिळण्याचा हक्क आहे, त्यासाठी हा संघर्ष उभा राहिला आहे. ही फक्त एका रुग्णालयाची कहाणी नाही, तर “आपली आरोग्यव्यवस्था कोणासाठी आहे — जनतेसाठी की खाजगी कंपन्यांसाठी?” असा प्रश्न यातून उपस्थित होत आहे.

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વ્યારા હોસ્પિટલનો સંઘર્ષ: ગુજરાતના આદિવાસીઓ ઊભા છે ખાનગીકરણના વિરોધમાં

દક્ષિણ ગુજરાતના આદિવાસી બહુલ તાપી જિલ્લાના વ્યારા કસ્બામાં આજે એક અલગ પ્રકારની લડત ચાલી રહી છે. વ્યારા જિલ્લા હોસ્પિટલને ખાનગી હાથોમાં સોંપીને મેડિકલ કોલેજ ચલાવવાના પ્રસ્તાવએ આ જિલ્લાના લોકોને હચમચાવી દીધા છે. આ માત્ર એક નિર્ણયનો વિરોધ નથી, પરંતુ તે નીતિનો વિરોધ છે જે જાહેર આરોગ્ય પર નહીં પરંતુ નફા પર આધારિત છે.

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व्यारा अस्पताल का संघर्ष: गुजरात के आदिवासी खड़े हैं निजीकरण के खिलाफ

दक्षिण गुजरात के आदिवासी बहुल जिले तापी के व्यारा कस्बे में, आज एक अलग तरह की लड़ाई लड़ी जा रही है। व्यारा ज़िला अस्पताल को निजी हाथों में सौंप कर मेडिकल कॉलेज चलाने के प्रस्ताव ने इस जिले की जनता को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ़ एक फैसले का विरोध नहीं है, बल्कि उस निति का विरोध है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि मुनाफ़े पर आधारित है। इसके पीछे यह विश्वास है कि हर किसी को सस्ता और अच्छा इलाज अधिकार के तौर पर मिलना चाहिए। यह संघर्ष सिर्फ एक अस्पताल की कहानी नहीं है, बल्कि यह सवाल उठा रहा है कि आखिर हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था है किसके लिए– जनता के लिए या प्राइवेट कम्पनियों के लिए ?

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The Struggle for Vyara Hospital: Gujarat’s Tribal Communities Stand Against Privatization

In Vyara, a town in the tribal-dominated district of Tapi in South Gujarat, a unique struggle is being fought today. The proposal to hand over the Vyara District Hospital to private hands to run a medical college has shaken the people of the district. Their opposition is not just to a single decision, but is a protest against a policy based on profit rather than public health. It is driven by the belief that everyone should have the right to affordable and good treatment. This struggle is not just about one hospital—it raises a deeper question: who is our health system really for? The people, or private corporations?

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वर्ल्ड बैंक को नकार कर, लोगों की ताकत ने रोका सदर अस्पताल रांची का निजीकरण

लाल ईंटों से बनी लेडी इरविन अस्पताल, रांची की भव्यता अब कई गुना बढ़ गई है, आज यह गतिविधियों से खचाखच भरा हुआ है। यह लेडी इरविन अस्पताल 1933 में छोटानागपुर का एकमात्र स्त्री रोग और प्रसूति अस्पताल के रूप में स्थापित हुआ था। बाद में इसे आम जनता के बीच बिरला अस्पताल के नाम से जाना जाने लगा क्योंकि बिरला समूह ने इसके लिए लगभग 210 एकड़ जमीन दान दी थी। तभी से यह अस्पताल इस क्षेत्र के गरीब और आदिवासी जनसंख्या के लिए, खासकर प्रसूति से संबंधित चिकित्सा सहायता के लिए, एकमात्र उम्मीद बना रहा। समय बीतने के साथ, यह एक सामान्य अस्पताल में बदल गया, जहाँ रेबीज़, टीबी, छोटे-मोटे चोट और अन्य आम बीमारियों का इलाज होने लगा।

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How people’s power halted the World Bank–backed privatisation of Sadar Hospital Ranchi

The grandeur of Red Brick Lady Irwin Hospital in Ranchi has increased manifold now bustling with activities. This lady Irwin Hospital was established in 1933 as the only gynaecological and obstetric hospital of Chhota Nagpur. Later this was popularly known as Birla Hospital as about 210 acres of land were donated by the Birla group. Since that time, the hospital had been the only hope for the poor and tribal population of this area, especially for maternity related medical help. As time elapsed, this transformed into a general hospital, especially for treatment of rabies, tuberculosis, minor injuries and other common diseases.

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बिन भरोसे की सवारी: महाराष्ट्र की विवादास्पद एम्बुलेंस पीपीपी योजना

एम्बुलेंस संकट की घड़ी में लोगों के लिए जीवनरेखा होती हैं। राज्य का यह कर्तव्य है की आपातकालीन एम्बुलेंस सेवाओं के माध्यम से लोगों की जान की रक्षा की जाए। लेकिन महाराष्ट्र में राज्य सरकार इस ज़रूरी सेवा को बड़े पैमाने पर संदिग्ध ‘पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप’ (पीपीपी) के ज़रिये निजी कंपनियों को सौंप रही है। नतीजा यह है कि जो सेवाएँ लोगों की जीवनरेखा होनी चाहिए थीं, वे निजी कंपनियों की मुनाफ़ा रेखा बन गई हैं। इस लेख में हम बताते हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने किस तरह एक बड़े एम्बुलेंस ठेके में प्रवेश किया है, जहाँ मुनाफ़ा मरीजों के हित से ऊपर रखा जा रहा है, और ऐसा संदेह है की भ्रष्टाचार की वजह से जनता और कर्मचारियों को नुक्सान हो रहा है।

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Taken for a Ride: Maharashtra’s Controversial Ambulance PPP

Ambulances are meant to be lifelines for people in moments of crisis. Emergency ambulance services embody the state’s duty to protect lives. But in Maharashtra the State Government is outsourcing this essential service through large scale but dubious Public–Private Partnerships (PPPs), and these lifelines have been converted into profit lines for private operators. In this article we discuss how the Maharashtra Government has entered into a major ambulance contract, where profit is taking precedence over patients, and corruption appears to be undermining patient care and staff welfare.

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भुलवणारा रस्ता – महाराष्ट्राचे वादग्रस्त ॲम्ब्युलन्स पीपीपी मॉडेल

संकटाच्या वेळी रुग्णवाहिका जीवनवाहिनी असतात. नागरिकांचे संरक्षण करणे हे सरकारचे कर्तव्य आहे, आणि आपत्कालीन रुग्णवाहिका सेवा चालवणे ही सरकारची महत्वाची जबाबदारी आहे. पण महाराष्ट्रात, राज्य सरकार ही अत्यावश्यक सेवा मोठ्या प्रमाणावर आऊटसोर्स करत आहे. सार्वजनिक-खाजगी भागीदारी (PPP) अंतर्गत जीवनवाहिनी सेवा आता खाजगी कंपन्यांसाठी प्रचंड नफ्याचे साधन बनले आहे. यावर्षी महाराष्ट्राने 108 ॲम्ब्युलन्सचा एक मोठा करार केला आहे. यामध्ये ठेकेदाराच्या नफ्याला अधिक प्राधान्य देऊन, रुग्णांना विश्वसनीय सेवा देणे हे दुय्यम झाले आहे. या करारामुळे कर्मचारी वर्गाचे मनोबल कमी होत आहे, तसेच यामध्ये मोठ्या प्रमाणात भ्रष्टाचार असण्याची शंका व्यक्त केली जात आहे.

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हिमाचल प्रदेश – युवाओं में बढ़ते नशे के खतरे के खिलाफ लोग हुए एकजुट

नशीले पदार्थों तथा नशीली दवाओं के दुरुपयोग से तात्पर्य उन पदार्थों के अवैध उपयोग से है, जिनमें नशे की लत लगने की अधिक संभावना होती है. इनका प्रयोग इसके बावजूद किया जाता है की उनके हानिकारक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में जानकारी होती है। आमतौर पर दुरुपयोग की जाने वाली दवाओं में कोकेन, हेरोइन, एमडीएमए (मॉली) और सिंथेटिक पदार्थ शामिल हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मूल कारण अक्सर साथियों का दबाव, जिज्ञासा, अनसुलझे पारिवारिक तनाव, संवादहीनता, चिंता, करियर संबंधी दबाव, और माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएँ होती हैं। ये कारक संवेदनशील व्यक्तियों, विशेषकर युवाओं को मादक पदार्थों के सेवन और उसके बाद लत की ओर धकेल सकते हैं।

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