- आयुषी पुंडीर, छात्रा, हिमाचल प्रदेश
नशीले पदार्थों तथा नशीली दवाओं के दुरुपयोग से तात्पर्य उन पदार्थों के अवैध उपयोग से है, जिनमें नशे की लत लगने की अधिक संभावना होती है. इनका प्रयोग इसके बावजूद किया जाता है की उनके हानिकारक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में जानकारी होती है। आमतौर पर दुरुपयोग की जाने वाली दवाओं में कोकेन, हेरोइन, एमडीएमए (मॉली) और सिंथेटिक पदार्थ शामिल हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मूल कारण अक्सर साथियों का दबाव, जिज्ञासा, अनसुलझे पारिवारिक तनाव, संवादहीनता, चिंता, करियर संबंधी दबाव, और माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएँ होती हैं। ये कारक संवेदनशील व्यक्तियों, विशेषकर युवाओं को मादक पदार्थों के सेवन और उसके बाद लत की ओर धकेल सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश में नशीले पदार्थों की स्थिति
पंजाब, जम्मू और कश्मीर और चंडीगढ़ की सीमाओं से सटा हिमाचल प्रदेश आज हेरोइन और अन्य नशीले पदार्थों एवं नशीली दवाओं की घुसपैठ की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है, इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह निरंतर चुनौती युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। कई लोग विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों के शिकार हो जाते हैं, जिससे जुड़े ओवरडोज और गंभीर शारीरिक समस्याओं की दुखद घटनाएँ होती हैं, जो पूरे समुदाय में गूंजती हैं।
हिमाचल प्रदेश नशीली दवाओं की लत से संबंधित एक बढ़ते संकट का सामना कर रहा है। पड़ोसी राज्यों पंजाब के साथ समानताएँ दर्शाते हुए, यहाँ भी नशीले पदार्थों के उपयोग के रुझान में उल्लेखनीय बदलाव आया है – प्राकृतिक से सिंथेटिक नशीले पदार्थों जैसे चिट्टा (हेरोइन का एक रूप) और भांग से बने पदार्थों (चरस, गांजा) की ओर रुझान बढ़ रहा है।
सरकारी रिपोर्टों और पिछले सर्वेक्षणों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 27 फीसदी युवा नशीले पदार्थों के सेवन में लिप्त हैं, जिनमें से 35 फीसदी कथित तौर पर सिंथेटिक ड्रग्स का उपयोग करते हैं। ये चिंताजनक आँकड़े तत्काल कार्रवाई की जरूरत को दर्शाते हैं।

नशीले पदार्थों की लत से निपटने में प्रमुख चुनौतियाँ
नशीले पदार्थों की लत समाप्त करने के दौरान कई चुनौतियाँ आती हैं। जैसे की बेहद नफ़ा कमाने वाली नशीले पदार्थ बेचने की सशक्त सप्लाई लाइन, पीड़ित लोगों के लिए कमजोर उपचार व्यवस्था, अपर्याप्त नशामुक्ति एवं पुनर्वास सेवाएँ, और जागरूकता की कमी. सीमावर्ती और पड़ोसी राज्यों से नेटवर्क द्वारा, नशीले पदार्थों एवं नशीली दवाओं की उपलब्धता आसान हो जाती है। हिमाचल प्रदेश दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है जो कुल्लू, मनाली और कसोल जैसे इलाकों में रेव पार्टियों के लिए भी आते हैं। कुछ क्षेत्रों में अफीम और भांग का अवैध उत्पादन भी होता है, पर इस समस्या से निपटने के लिए कड़े फैसले लेने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दिखती है।

हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति (एच.जी.वी.एस.) का नशे के खिलाफ जन–केंद्रित आंदोलन
हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति एक व्यापक और जमीनी स्तर का, स्वयंसेवी जनसंगठन है जो नशीले पदार्थों की लत से निपटने के लिए समर्पित है। यह संगठन नशे को केवल एक बीमारी के रूप में न देखए हुए, एक सामाजिक समस्या के रूप में देखती है, जिसके लिए चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक और सामुदायिक समर्थन की आवश्यकता होती है। संगठन ने माना है कि कलंक (Stigma) और इनकार (Denial) अक्सर उपचार में बाधा बनते हैं।
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद, यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। एच.जी.वी.एस. का मानना है कि इस संकट को रोकने के लिए, आपूर्ति और मांग दोनों में कमी लाने की रणनीति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, युवाओं को अपराधी बनाने के बजाय, रोकथाम, उपचार और प्रभावित व्यक्तियों को समाज में दोबारा शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

एच.जी.वी.एस. की बहुआयामी रणनीति
कोविड-19 महामारी के प्रभावों को ध्यान में रखकर, एच.जी.वी.एस. ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर केंद्रित एक अभिनव अभियान शुरू किया, जिसका नाम है कोविन दोस्त (DoST- Disseminator of Scientific Temperament)। इसमें शिमला के आसपास के 100 से ज्यादा युवा और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हुए, जिनके साथ नियमित ऑनलाइन सत्र आयोजित किए गए ।
नशे से पीड़ित व्यक्तियों एवं प्रभावित परिवारों की स्थिति बेहद गंभीर पायी गयी, क्योंकि वे अपने बच्चों को एक दुष्चक्र में फँसा देखकर खुद को असहाय पाते हैं। ओवरडोज के कारण होने वाली मौतों की बढती घटनाएं इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करती हैं। समुदाय से इस व्यापक समस्या की जड़ों का सामना करने, और उसे दूर करने का आग्रह करते हुए ‘युवा बचाओ अभियान’ शुरू किया गया। यह पहल नशीली दवाइयों की मांग को कम करने (Demand Reduction) और आपूर्ति श्रृंखला (Supply chain) को तोड़ने के लिए शोध कार्य, विशेषज्ञों से बातचीत, क्षमता निर्माण और व्यापक सामुदायिक लामबंदी पर जोर देती है। इस प्रयास में, एच.जी.वी.एस. का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को सामूहिक रूप से अभियान में योगदान देने के लिए प्रेरित करना है, तथा इसे एक व्यापक सामाजिक समस्या के रूप में समझना है।
पिछले एक साल (२०२४–२५) के दौरान ली गयी पहल
बिगड़ती स्थिति के प्रति बढ़ती चिंता के साथ, विविध जनाधार वाले सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्र के 40 से अधिक संगठनों का एक साझा मंच हिमाचल फोरम अगेंस्ट ड्रग एब्यूज (HFADA) नाम से एकजुट हुआ है। इस मंच का नजरिया है की नशे की आदत को अपराध के बजाए, एक बीमारी के रूप में देखा जाये । फोरम नशे की लत से जूझ रहे व्यक्तियों या उनके परिवारों के खिलाफ किसी भी प्रकार के भेदभाव, दंड या हिंसा को दृढ़ता से अस्वीकार करता है। फोरम किसी भी प्रकार के सामाजिक बहिष्कार, सरकारी सेवाओं से वंचित करने वाले कदम, मृत्युदंड आदि का समर्थन नहीं करता है।
किशोरावस्था के बच्चे आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, जो नशीले पदार्थों एवं नशीली दवाओं के खतरे की सबसे नाजुक कड़ी है। ऐसे में परिवार की भूमिका बहुत ज़रूरी है, जहाँ माँ प्राकृतिक तथा भावनात्मक रूप से अपने बच्चों के सबसे करीब होती है। इसलिए एच.जी.वी.एस. ने माताओं के सशक्तिकरण की भूमिका पर जोर दिया है। MAA (Mother Against Addiction)की पहल के माध्यम से, माताओं में शुरुआती चरण में अपने बच्चे का अवलोकन (Observation) करने और निर्णय लेकर हस्तक्षेप (Decision making) करने के कौशल विकास के तौर पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एच.जी.वी.एस. ने ‘सहयोगी समूहों’ के द्वारा नशे की लत से उबर रहे लोगों और प्रभावित परिवारों के साथ द्वारा संवाद शुरू किया है, जो अपने अनुभव और चुनौतियाँ साझा करने के लिए आगे आ रहे हैं। समाज में कलंक को नजरअंदाज करते हुए, वे अपने अनुभव और विचार समाज के सामने रखने और दूसरों को बचाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही युवा मार्गदर्शकों को DoST या पीयर मेंटरशिप मॉडल के माध्यम से नशामुक्ति के प्रयासों में, उन्हें अपने साथियों का समर्थन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इनके सकारात्मक प्रयासों से उनके साथियों को नशे से छुटकारा मिलने में मदद मिलती है ।
नशे के आदी युवाओं और उनके परिवार जो चुनौतियों झेल रहे हैं उनके बारे में जानकारी बढ़ाने के लिए, और समाज में व्याप्त कलंक को मिटाने के लिए, एक डिजिटल अभियान शुरू किया गया है । यह अभियान सामाजिक एवं सामूहिक जागरूकता और सहानुभूति पर आधारित है। एच.जी.वी.एस. ने युवाओं की सोशल मीडिया पर अधिक भूमिका को देखते हुए “The WHITE Truth” के नाम से एक वेब सीरीज तैयार की है, जिसमें नशे से जुड़े विभिन्न पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया है। इसे Gyan Vigyan Stream चैनल से YouTube, Facebook तथा Instagram के माध्यम से संचालित किया जा रहा है । (https://www.youtube.com/watch?v=Gc42gSEeA7w)

सरकार के स्तर पर हस्तक्षेप
8 सितम्बर, 2024 को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर आयोजित, राज्य स्तरीय अधिवेशन में हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने भागीदारी करते हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए समिति को बधाई दी तथा प्रभावी कार्यान्वयन का आश्वासन दिया। इसके बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने मार्च, 2025 के विधानसभा सत्र में ‘‘हिमाचल प्रदेश मादक द्रव्य एवं नियंत्रित पदार्थ (रोकथाम, नशामुक्ति और पुनर्वास) विधेयक- 2025’’ के रूप में एक विधेयक पारित किया। यह क़ानून नशा-मुक्ति और पुनर्वास केन्द्रों की व्यवस्था करता है, जहाँ नशा छुड़ाने की चिकित्सा, परामर्श, कौशल विकास और रोज़गार प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें एक प्रावधान यह भी है कि नशा-मुक्ति और पुनर्वास के लिए राज्य स्तर पर एक विशेष कोष बनाया जाएगा ।
एचजीवीएस के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप 26 जून, 2025 को नशे के दुरूपयोग तथा नशा तस्करी के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, प्रदेश सरकार के कार्यक्रम में समिति को आमंत्रित किया गया । यहाँ इस समस्या की स्थिति, प्रयासों तथा चुनौतियों पर एक प्रस्तुति की गयी । डेढ़ साल के सफल अभियान के बाद, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा राज्य कार्ययोजना के लिए सुझाव मांगे गए । हिमाचल फोरम अगंस्ट ड्रग एब्यूज को अब हिमाचल प्रदेश राज्य नशा निवारण बोर्ड में शामिल किया गया है, जो राज्य कार्य योजना 2026-27 में सहयोग करेगा।
आन्दोलन जारी है…….
नशाखोरी केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है, यह एक वैश्विक संकट है। एचजीवीएस का हस्तक्षेप हिमाचल प्रदेश के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत अवश्य करता है, इसके साथ ही विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक हालातों को ध्यान में रखते हुए, अलग अलग राज्यों में और देश के स्तर पर इस प्रकार की पहल आज आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
नशे की समस्या पर सामाजिक जागरूकता बढ़ाने, और बेहतर इलाज व पुनर्वास सेवाएँ लागू कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाए रखने के लिए, लगातार जन-आंदोलन की ज़रूरत है। साथ ही शैक्षणिक संस्थानों और समुदायों के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से हस्तक्षेप करना ज़रूरी है, ताकि लोगों की समझ और क्षमता विकसित हो सके। अब बढ़ते नशे की समस्या को एक जन स्वास्थ्य संकट मानकर, नशा-नियंत्रण की इस मुहिम को मजबूती से आगे बढ़ाना आवश्यक है।
हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति – यह हिमाचल फोरम अगेंस्ट ड्रग एब्यूज और जन स्वास्थ्य अभियान जैसे मंचों के साथ मिलकर, मजबूती से इस आंदोलन को आगे बढ़ाने एवं गति देने का सतत प्रयास कर रही है। इस आंदोलन को दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ाते समय, नजरिया यह है कि नशे की चपेट में आए युवाओं को सज़ा न दी जाए – बल्कि उन्हें सुरक्षा मिले, और समाज मिलकर उन्हें दोषी न ठहराए – बल्कि उनके उपचार में उनके साथ खड़ा हो।


